जो किस्से वो सुनाती थी, जो क़द्रें वो सुनाती थी
चन्दन और पानी सी पुष्पित पल्लवित लगती थीं
जो लज़ीज़ बातें वो सुनाती थी, उनकी खुशबू घर कर जाती थीं
उसकी साड़ी का आँचल, मोह ममता का समावेश था
गुलमोहर के पत्तों सी बारीक उसकी गीली हंसी
मेरी आख़री तमन्ना सी अनमोल थी
एक ताज़ा लिपे पुते आँगन की तरह वो धूलि धूलि सी रहती थी
त्रिवेणी सी निर्मल बोली में, जीवन के सारांश समझाती थी
गोधूलि सी घुलती हुई, दिनचर्या सी मुझमें उतर जाती थी
स्नेह और अपनापन तो अब भी मिलता है बेशक, मिलता रहेगा
उसके चले जाने से ज़िन्दगी नहीं रुकी हैं
पर वो जो माँ का प्यार था
उसका क्या होगा, वो अब कभी नहीं मिलेगा !