एक पेड़ लदा है पलाश के फूलों से
सुर्ख लाल गुच्छा, एक हरा पत्ता भी नहीं
गहरी होती रात में, जहां खुशबुएं बेपर्दा हैं
तुम मिले हो मुझे वहां पर
समय से परे, ज़माने से बेपरवाह
मैंने एक लम्हा चुरा लिया है,ख्वाइशों का वास्ता दे कर
बाद में वहाँ दास्ताँ मिलेगी, लम्हा घुल जायेगा कहीं पर
लाल स्याही से रंगे बेलॉस पलाश के फूल
जिनका रंगरेज़ इश्क़ है, खुद ही खिल जाते हैं लापरवाह
बेधड़क बिछ जाते हैं, हर बसंत, तुम्हारी आस के फूल
मेरी सरगोशी के मुख़्तसर से पल
पकते हैं घने पलाश के साये में
तुम कंठस्त हो गए हो मुझे इस छाँव में मिलते मिलते
देखो गुलज़ार होने लगे हैं अब लव्ज़ मेरे
उस दास्ताँ के गहरे टेसू, चुन लाई हूँ, वहीँ से जहां
एक पेड़ लदा है पलाश के फूलों से!
पलाश के फूल !
