ध- धूप – हिंदी कविता – #A2Z

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आसमान में छेद करके बिखरती पीली किरणें
तीखी धार सी बारीक, पिघले सोने सी चमकदार
भीनी खुश्बुओं के तरह फैलती निरंतर,चहुंओर लगातार
खुशखबरी सी मीठी बेसब्रर और ताज़ा

और गिरती हैं जब खनककर पेड़ों पर, पत्तों पर
तब छन कर आती है धूप बिम्ब प्रतिबिम्ब में
चंचल चहल चपल रौशनी, टूट के बिखरने को बेकरार
बुनती हैं एक धूप छाँव का तानाबाना

जैसे एक खुशनुमा सा इत्र, एक लहराता पीला आँचल
एक मधुरिमा सी धुन, एक बांसुरी की तान
डाली पाती पेड़ पपीहे पीते हैं ये अमृत सर्वत्र
एक प्रभामंडल उभरता है वातावरण में।

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Published by Daisy

I write whenever ideas crunch and overwhelme me! It's my reaction outpour.

40 thoughts on “ध- धूप – हिंदी कविता – #A2Z

  1. धूप जैसे खुशनुमा सा इत्र, सोने सी चमकदार, खुशबू की तरह फैली चारों ओर…
    बेहद खूबसूरत

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  2. wow so beautiful. loved the way you had expressed beauty of “Dhoop” is beautiful words. you are creating a magic with each poem.

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  3. Wow Daisy… I am just imagining the yellow sun rays and these lines of yours

    जैसे एक खुशनुमा सा इत्र, एक लहराता पीला आँचल
    एक मधुरिमा सी धुन, एक बांसुरी की तान

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